निखर/नीखर (Nikhar)
निखर/नीखर (Nikhar/Neekhar)
" नीखर " गडरिया समाज की एक उपजाति है नीखर एक पशुपालक व घुमन्तु कबीला था जिसे अब गडरिया के नाम से जाना जाता है। इस समाज के लोग पाल, पाली, राजपाल, राजपाली तथा बघेल उपनाम का प्रयोग करते है।
प्राचीन समय मे नीखर कबीला भेड़-बकरियों के " रेवड़ " को चराने के लिए चारागाह की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते थे जिससे यह लोग सम्पूर्ण भारत मे भ्रमण करते रहते थे नीखर जाति के प्रत्येक व्यक्ति के पास हजारों की संख्या में भेड़ो के रेवड़ होते थे भेड़ बकरियों के साथ-साथ नीखर गडरिऐ देशी नश्ल की गायों के भी रेवड़ अपने साथ रखते थे।
भेड़ो-बकरियों के रहने के स्थान को " रिवाड़ा " कहा जाता है
ये लोग भेड़ो से प्राप्त ऊन से कम्बल बनाने का कार्य भी करते थे ये लोग बहुत ही कुशल बुनकर भी थे।
यह लोग दुग्ध उद्योग के बड़े व्यपारी होते है वर्तमान समय मे नीखर लोगों की दिल्ली के आसपास के जिलों में बड़े दुग्ध उद्योग है दिल्ली एनसीआर का प्रसिद्ध व उत्तम गुणवत्ता से परिपूर्ण " गढ़वाल पनीर " नीखर(गडरिया) समाज की देन है। दिल्ली एनसीआर में " लक्ष्मी डेरी " ," लक्ष्मी आइसक्रीम " तथा " पाल डेरी " के नाम बहुत अधिक संख्या में उद्योग देखे जा सकते है।
" निखर गडरिया " शीर्षक व उपनाम
निखर समाज के लोग अधिकतर पाल, पाली, राजपाल, राजपाली ,बघेल ।
इंदौर मालवा क्षेत्र में निखर गारी चौधरी उपनाम प्रयोग करते हैं ।
बिहार में निखर गंगाजली कहा जाता है।
निखर (गडरिया) वेदों में मेषपाल ,वृष्णिपाल ,अजापाल ,अजपाल ,अविपाल आदि से वर्णित है इसलिए इन्हें उपनाम/शीषर्क " पाल " नाम से जाना जाता है
निखर/नीखर शब्द की उत्पत्ति
" निखर " एक संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ अर्थ होता है " पवित्र " , " शुद्ध (निकडू )" या " शुद्ध देशी या शुद्ध भारतवंशी "।
ग्रामीण क्षेत्रों में निखर गडरियों को शुद्ध भारतवंशी या शुद्ध देशी कहा जाता है
१. नीखर गडरियो के वंशावली लेखकों के अनुसार " निखर गडरिया " गडरिया की धर्मपत्नी गडरनी से जन्मे पुत्र की सन्तान है इसलिए इन्हें निखर कहा जाता है इसे ही निखर गडरिया स्वीकार करते हैं क्योंकि निखरों के पूर्वज भी अपनी उत्तपत्ति इसी प्रकार बताते थे।
२. एक लोकमान्यता यह भी है कि गडरिया का विवाह एक ब्राह्मण लड़की से भी हुआ था उस ब्राह्मण लड़की से उत्पन्न हुई सन्तान को निखर गडरिया के नाम से जाना जाता है
३. निखर गडरियो का निकास हिमालय पर्वत से बताया जाता है इन्हे हिमालयी गडरिया भी कहा है निखर गडरिया प्राचीन समय के पहाड़ो पर अधिक सर्दी पड़ने के कारण चारागाह की तलाश में अपनी भेड़ो के रेवड़ लेकर नीचे मैदानी भागों आ जाते थे और ग्रीष्म ऋतु पड़ने पर पुनः पहाड़ो पर चले जाते थे ये लोग चारहगाह की खोज में ऐसे ही ये आवागमन करते थे। ब्रिटिश शासन प्रशासन ने निखर गडरिया को एक स्थान पर स्थापित किया ये लोग तराई क्षेत्र में ही बस गए थे।
जिसके बाद इनका पहाड़ो से नाता टूट गया और ये लोग यहीं के होकर रह गए।
ऐसा माना जाता है कि निखर गडरिया लोग रंग में भारत के मैदानी भाग वाले गडरियों से गौरे अर्थात निखरे होते है इसलिए इन्हें निखर कहा जाता है
निखर गडरिया
निखर मुख्य रूप से सनातन हिन्दू सनातन धर्म को मानने वाली एक भेड़-बकरी पालक जाति है।
निखर जाति की उत्पत्ति भगवान शिव से हुई है इसलिए निखर गडरियों के कुलदेवता भगवान शिव है ।
शिव के अलावा यह जाति भगवान विष्णु भगवान, श्री कृष्ण ,देवी काली ,देवी लक्ष्मी आदि सभी सनातन हिंदू देवी देवताओं को मानती है ।
निखर गडरिया प्राकृतिक के निकट जीवन यापन करने वाली पशुधन प्रेमी व परिश्रमी जाति है। निखर जाति भारतीय उपमहाद्वीप में पायी जाने वाली प्रमुख जातियों में से एक है।
निखर गडरिया एक घुमन्तू चरवाह जाति है इस निखर घुमन्तू जाति को ब्रिटिश काल में अंग्रेजों द्वारा स्थिर करना प्रारम्भ किया गया था लेकिन आज भी यह जाति बहुत से प्रदेशों में अपने पशुधन के साथ घुमन्तू जीवन यापन करती है ।
निखर गडरिया जाति के पुरुष सिर पर लाल धोली पगड़ी, कानों में सोने की मुरकी, कांधे पर काली कम्बली, तथा हाथ मे लाठी विशेष रूप से रखते थे।
निखर गडरिया जाति की महिलाएं मुख्यतः दामन/घाघरा कुर्ती व ओढ़नी पहरा करती थी व हाथों में लाक की चूड़ियां पहना भी करती थी।
विशेष रूप से निखर गडरिया समाज में " लाक " की चूड़ियां सुहाग की निशानी होती हैं क्योंकि निखर गडरिया समाज में कन्या विवाह के समय सुहाग के रूप में सर्वप्रथम " लाक का चूड़ा " मनहारी के द्वारा पहराया जाता है अब यह आजकल नगरों में मनहारी न उपलब्ध होने के कारण घर की महिलाओं द्वारा यह परम्परा निभाई जाती है यह निखर गडरियो की संस्कृति और परंपरा की विशेष पहचान है।
पहले ऐसी परम्परा थी कि निखर गडरिया समाज की लड़कियां विवाह उत्सव में सर्वप्रथम " लाक की चूड़ियां " पहनने के पश्चात ही अन्य प्रकार की चूड़ियां पहनती थी उससे पहले कुँवारी कन्या कभी भी कैसी भी चूड़ियां नहीं पहनती थी ।
आज के आधुनिक युग में भी निखर गडरिया समाज में परम्परा प्रचलित है
निखर गडरिया समाज की संस्कृति और वेषभूषा आधुनिकता के कारण विलुप्त होती जा रही है।
निखर/नीखर गौत्र
निखर गडरिया समाज के छत्तीस क्षत्रिय कुल गौत्र है ( वंशावली लेखक जगाओ द्वारा )
1:- बानिया(बैस)
उपशाखाएँ
क:- सुदे/सीदे बानिया(बैस)
ख:-पत्थरिया बानिया(बैस)
ग:- कुथलिया बानिया(बैस)
घ:- नाहलिया बानिया(बैस)
ड़:- डांडिमार बानिया(बैस)
2:- चन्देल
उपशाखाएँ
क:- राय चन्देल
ख:- चंदिया चन्देल
ग:- गुहिया चन्देल
3:- हिंडवार/हिन्दवार/हिरणवार/हिंनवार
उपशाखाएँ
क:- खरसैला हिंडवार
ख:- टिकला हिंडवार
ग:- बड़े हिंडवार
घ:- छलांगिया हिंडवार