Vrishnipal/वृष्णिपाल

ल की पहली जाति गड़रिया का मुख्य पेशाइतिहास कर 

अरविन्द व्यास :- लेखक व इतिहासकार

विश्व की सर्वप्रथम मानवजाति वृष्णिपाल/मेषपाल/अजापाल/अजपाल/अविपाल/गड्डलिका अर्थात गडरिया है 

नवपाषाण काल का अभ्युदय लगभग पन्द्रह हजार वर्ष पूर्व हुआ। इस काल में मनुष्यों ने घुमन्तु जीवन छोड़ना आरम्भ कर अस्थायी आवासों में रहना आरम्भ किया तथा अपने उपयोग के लिए पशु-पालन भी आरम्भ किया। कृषि भी इसके उपरान्त आरम्भ हुई। कुत्ते प्रथम पालतू प्राणी थे; अनुमान है कि इन्हे साइबेरिया में 18,800 से 32,100 वर्ष पूर्व पालना आरम्भ किया गया। कुत्ता मानव के लिए शिकार तथा अन्य आहार खोजने में सहायक बना। 

जब शिकार तथा अन्य माध्यम से भोजन प्राप्त करना सम्भव न था ऐसी परिस्थिति में मानवों ने अपने निकट में रहने वाले पशुओं को पालतू बनाने की व्यवस्था को सोचा; यह सम्भव है कि इसका आरम्भ पशुओं को किसी बाड़ अथवा ऐसे स्थान पर रोक कर रख पाने की क्षमता समझ पाने ने पशुओं को पालतू बनाने की प्रक्रिया का आरम्भ किया। पशु जिनके आहार की व्यवस्था में कठिनाई न हो, जो मानवों के नियन्त्रण में रह पाएँ, पनपें, और जिनका आवश्यकता होने पर आहार के प्रयोग किया जा सके।

आहार के लिए अपने रहने के स्थान के निकट कृषि का कार्य लगभग बारह हजार वर्ष पूर्व आरम्भ हुआ। यह कार्य मेसोपोटामिया 

 के अतिरिक्त ईरान-ईराक की सीमावर्ती ज़ार्गोस पहाड़ों के क्षेत्र में हुआ। मेसोपोटामिया तथा ज़ार्गोस के तब के जनसमूहों के डीएनए का अध्ययन करने से उनके एक-दूसरे से आज के 46,000 से 77,000 वर्ष पूर्व के मध्य एक दूसरे से अलग होने का आकलन किया गया है।मेसोपोटामिया के किसानों ने उत्तर तथा पश्चिम में विस्तार किया और उन्होंने युरोप में कृषि क्रान्ति आरम्भ की। ज़ार्गोस के किसानों ने पूर्व में भारत तथा मध्य एशिया की ओर कृषि का प्रचार-विस्तार किया।  कृषि को पशुओं से बचाने के लिए बाडाबन्दी की गई। इसका अर्थ यह है कि इसकी बहुत ही अधिक सम्भावना है कि कृषि तथा निर्माण नवपाषाण काल के दो प्राचीनतम व्यवसाय हों।

बाडाबन्दी पशुओं को कृषि से दूर रखने में सक्षम थी; अतः किन्हीं मनीषियों ने भविष्य में अपने उपभोग हेतु पशुओं को बाडाबन्द करने की सोची; और पशुपालन का व्यवसाय आरम्भ किया।

(चित्र स्रोत : स्वनिर्मित)

ऐसे पशुओं में गाय महत्वपूर्ण थी। अनातोलिया प्रायद्वीप (आधुनिक तुर्की) में लगभग साढ़े-दस हजार वर्ष पूर्व गोपालन आरम्भ किया गया। डीएनए परिक्षण के आधार पर बोस टॉरस प्रजाति को लगभग अस्सी गायों को इस समय के आसपास पालतू बनाया गया। आधुनिक गायें इन्हीं की वंशज हैं। भारतीय गायों की प्रजाति बोस इंडिकस को लगभग दस हजार से सात हजार वर्ष पूर्व ही पालतू बनाया गया है। गायों के इन दोनों वंश के साझा पूर्वज लगभग दो लाख वर्ष पूर्व के हैं। 

 

सूअरों को भी लगभग 10,500 वर्ष पूर्व भूमध्य सागर के पूर्वी तट के निकटवर्ती क्षेत्र में पालतू बनाया गया था; और बाद में किसानों द्वारा यूरोप में लाया गया। लगभग 6500 वर्ष पूर्व तक उत्तरी यूरोप में निकट पूर्वी हैप्लोटाइप वाले पालतू सूअर मिलने लगे थे। 

मेसोपोटामिया के दोआब के पर्वतीय क्षेत्रों में लगभग दस हजार (10,500 — 9,500) वर्ष पूर्व भेड़ तथा बकरियों के पालन के प्रमाण मिलते हैं। इनके साथ ही वहाँ गेहूँ तथा जौ की खेती के प्रथम प्रमाण भी मिलते हैं। 

  किन्तु, भेड़-बकरियों के डीएनए के विश्लेषण से उनके विभिन्न स्थानों पर विभिन्न समय पालन आरम्भ किये जाने के प्रमाण मिलते हैं।  भेड़ को आहार तथा अन्य प्रयोजन से पाला गया प्रथम पालतू जीव कहा जा सकता है। भेड़-पालकों के लिए कुत्ते भेड़ो को घेरने में सहायक सिद्ध हुए।

भैंस के पालन का आरम्भ लगभग 8,300 वर्ष पूर्व पश्चिमी भारत में किया गया। 

 सिन्धु घाटी सभ्यता के पतन काल में (लगभग 4,000 से 3,500 वर्ष पूर्व) भैंस, तथा भारतीय गायों का अनातोलिया तथा मिस्र तक प्रसार होना आरम्भ हुआ। इस प्रसार के साथ अनातोलिया में भारतीय आर्य भाषाओं का भी प्रसार हुआ।

घोड़े लगभग 5,500 वर्ष पूर्व पालतू बनाये गए। यह स्थान अब आधुनिक कजाकस्तान में है। 

ऊँट सम्भवतः 5,000 वर्ष पूर्व अरब प्रायःद्वीप अथवा सोमालिया में पालतू बनाये गए। 

सिन्धु घाटी सभ्यता के शिखर काल में (4600 से 4000 वर्ष पूर्व) भारतीय उपमहाद्वीप में हाथियों को पालतू बनाने की प्रक्रिया आरम्भ हुई। किन्तु, हम हाथियों को अब भी वश में रखने की कला सीख रहे हैं; उन्हें पूर्ण रूप से पालतू नहीं बनाया जा सका है। 


भेड़ को गाडर भी कहा जाता है; अतः भेड़ तथा बकरी को पालने वाले गडरिया कहलाते हैं। नव पाषाण युग में जिन नए व्यवसायों का आरम्भ हुआ वे शिल्पी (घर तथा बाड़े बनाने वाले), कृषक, तथा पशुपालक हैं। इससे पूर्व के तक्षकों (पत्थर के उपकरण बनाने वाले), शिकारियों, तथा संग्राहकों (घूम-घूम कर भोजन सङ्ग्रह कर लाने वाले) आदि व्यवसायों के इतर अपना कौशल दिखलाया।

इस आधार पर गडरिया नवपाषाण युग का एक नया व्यवसाय कहला सकता है। इस व्यवसाय के लोग वधिक का कर्म भी करते थे। गडरियों ने ईरान के क्षेत्र में लगभग 6000 वर्ष पूर्व ऊन का उत्पादन आरम्भ किया। इस सम्बन्ध में मेरा यह आलेख पढ़िए :—

मनुष्य ने 'ऊन' का सबसे पहला प्रयोग कब से शुरू किया? के लिए अरविन्द व्यास (Arvind Vyas) का जवाब


पुरातत्व के आधार पर गडरिया व्यवसाय का आरम्भ लगभग 11,000 वर्ष पूर्व मेसोपोटामिया में हुआ है। इसी के निकटवर्ती क्षेत्रों में गौपालन, सूअरपालन, जैसे व्यवसाय भी आरम्भ हुए। इसके अतिरिक्त ज़ार्गोस में भी स्वतन्त्र पशुपालन के प्रमाण मिलते हैं।

बाइबिल के अनुसार आदम का छोटा पुत्र आबेल प्रथम गडरिया है।

भारतीय भेड़ों का मिटोकॉंड्रियल डीएनए हैप्लोटाइप ए तथा बी का है; 

 इसमें टाइप ए का पालन भारत में आरम्भ हुआ है; तथा टाइप बी को अरब सागर के समुद्री मार्ग से लाने का अनुमान किया जाता है। यद्यपि, एक मत यह भी कहता है कि टाइप ए भेड़ भारत में अरब प्रायःद्वीप से सीधे लाई गई; और टाइप बी भेड़ें मध्य-पूर्व से मंगोलियाई पठार के माध्यम से घुमते हुए भारत लाई गई।  अतः प्रथम पालतू भेड़ें तथा गडरिये भारतीय मूल के नहीं हैं। भारत में प्रथम गडरिये और किसान ईरान के ज़ार्गोस पर्वतीय क्षेत्र से लगभग 8,000 वर्ष पूर्व आये। इस काल की सिन्धु घाटी सभ्यता में भेड़पालन तथा कृषि के प्रमाण मिलते हैं। इन्हीं किसान पशुपालकों तथा तब के भारतीय जनसमूहों के मिश्रित वंशजों ने भारतीय गाय तथा भैंसों का भी पालन आरम्भ किया।

संस्कृत में गडरिया अविपाल, औरभ्रिक, गड्डरिक, मेषपाल, अथवा वृष्णिपाल कहा जाता है। भेड़ को अवि, औरभ्र, उरभ्र, गड्डर, मेष, वृष्णि, जैसे नाम दिए गए हैं। इन्द्र, अग्नि, विष्णु, कृष्ण, आदि देवताओं को वृष्णि का नाम दिया गया है। विशेषकर, वैदिक विहङ्गम में यह इन्द्र, अग्नि के लिए सम्बोधन उनका मेषपालन से भी सीधा सम्बन्ध व्यक्त करता है।

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